केवल संदेह से मुहम्मद हत्याएं करना
वॉल्यूम 4, 52 पुस्तक, 286 संख्याः
सलामा बिन अल अक्वा ने इस प्रकार बयान किया:
"जब पैगंबर एक यात्रा पर थे, अविश्वासियों का एक जासूस उनके पास आया। वह जासूस पैगंबर के साथियों के साथ बैठा और उनसे बातें करने लगा और उसके बाद फिर वहाँ से चला गया। पैगंबर ने (अपने साथियों से) कहा - ‘उसका पिछा करो और उसे पकड़कर उसकी हत्या करो।’ इसलिए, मैं ने उसकी हत्या की।" तब पैगंबर ने (युद्ध-लूट में उसके हिस्से के अलावा) मारे गये उस जासूस का सामान भी उसे दिया।
यहाँ हमें स्पश्ट रूप से मालूम होता है, कि उस व्यक्ति के बारे में वहाँ कोई मुकदमा नहीं चलाया गया; ना ही यह पता लगाने की कोई कोशिश की गई, कि वह वास्तव में एक जासूस था या किसी अन्य कारण से उन्हें छोड़कर वहाँ से निकल गया। मुहम्मद को सिर्फ़ संदेह हुआ, और केवल उस संदेह के आधार पर उसने उसकी हत्या करवाया।
क्या वह सत्य के आधार पर की गई इन्साफ़ है? क्या लोगों को पहले अपने पक्ष में बोलने की और साफ़ाई देने का एक मौका दिये बिना उन्हें दोषी ठहराकर उनकी हत्या करना न्यायोचित है? क्या इस तरह का अन्यायी आदमी एक न्यायी परमेश्वर का नबी हो सकता है? निड़र और निष्पक्ष होकर फ़ैसला कीजिए। हक़ीक़ी परमेश्वर यहोवाह आपकी हिदायत करे, आमीन।
अंग्रेज़ी मूल - Muhammad And Execution On Suspicion